इस साल कई बड़ी राजनीतिक घटनाएं हुई . साल के शुरुआती महीनों में ही यूपी , पंजाब और उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में चुनाव हुए . पंजाब और उत्तराखंड में तो कांगेस और बीजेपी पुरानी सरकारों को हटाकर सत्तानसीन हुई लेकिन सबसे चौंकाने वाले नतीजे यूपी से आए . करीब सवा तीन सीटों के साथ बीजेपी ने देश के सबसे बड़े सूबे की गद्दी पर कब्जा कर लिया . कब्जा भी ऐसा कि तीन चौथाई सीटें झटकर बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनावों में अब तक सर्वेश्रेष्ठ प्रदर्शन किया . आखिरी वक्त में ‘यूपी को साथ पसंद है ‘ जैसे नारे गढकर साझा रथ पर सवार अखिलेश यादव और राहुल गांधी बुरी तरह मात खा गए . सत्ता से बेदखल होकर अखिलेश तो हाशिए पर गए ही , राहुल गांधी की पार्टी सिंगल डिजिट में सिमट कर नतीजों के रसातल में चली गई . सत्तर साल के इतिहास में कांग्रेस का इतना बुरा हाल कभी नहीं हुआ था .
यूपी के नतीजों ने जितना चौंकाया , उतना ही योगी आदित्यनाथ के सिर पर ताज रखने के फैसले ने चौंकाया . चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के अलावा यूपी के जिन पांच नेताओं के पोस्टर पूरे राज्य में लगे थे , उनमें योगी आदित्यनाथ नदारद थे . जब नतीजे आए तो केशव मौर्या से लेकर राजनाथ सिंह और मनोज सिंन्हा के नाम हवा में तैरने लगे . सुबह एक नाम , शाम दूसरा नाम . कयासों की पतंगबाजी के बीच जब सीएम के नाम का ऐलान हुआ तो सब पीछे छूट गए, चुनाव प्रचार के पोस्टरों से गायब योगी धमाके के साथ आगे आ गए . गोरखपुरी पीठ के महंथ और पांच बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ सीएम बन गए . पहली बार ऐसा हुआ जब देश के किसी सूबे की सत्ता भगवाधारी महंथ को सौंपी गई . महीने भर मीडिया में योगी -योगी ही छाए रहे . पक्ष और विपक्ष के विमर्श और शोर के बीच योगी ने संभाल कर कई फैसले किए . कई ऐलान किए . कई विवाद भी हुए . 2018 में योगी और उनके फैसलों पर नजर होगी क्योंकि सबसे अधिक लोकसभा सीटें यूपी में ही है और बीजेपी को भी 71 सीटें यूपी से ही मिली है .
साल की दूसरी बड़ी सियासी घटना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लालू यादव से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ आना है . नीतीश कुमार और उनकी पार्टी सोलह साल तक बीजेपी की पार्टनर रहने के बाद प्रधानमंत्री पद पर मोदी की उम्मीदवारी के खिलाफ झंडा बुलंद करते हुए ही अलग हुई थी . नीतीश ने अपने पुराने दुश्मन लालू यादव से हाथ मिलाकर बिहार विधान सभा का चुनाव लड़ा था . किसी ने सोचा नहीं था जो नीतीश कुमार मोदी की राजनीति के खिलाफ मोर्चेबंदी करते हुए विपक्ष की धुरी बनते जा रहे हैं , या जिन्हें 2019 में मोदी के लिए संभावित चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है , वो इस कदर पल्टी मार कर मोदी से ही हाथ मिला लेंगे . बहाना और मौका भले ही भ्रष्टाचार के आरोपों में लालू के कुनबे के फंसने का हो , लेकिन लालू से पिंड छुड़ाकर यूं नीतीश का बीजेपी के साथ कुछ ही घंटों के भीतर सरकार बना लेना भी एक चौंकाने वाली घटना थी .
माना गया कि यूपी में बीजेपी की जबरदस्त जीत और दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक के स्थानीय निकायों में बीजेपी का डंका बजते देखकर नीतीश कुमार को लगा कि 2019 में भी मोदी को शिकस्त देना मुश्किल होगा , तो क्यों नहीं उसी रथ पर सवार हो लें, जो सबसे तेज और सबसे आगे दौड़ता दिख रहा है. लालू के साथ चुनाव लड़ने और सरकार बनाने को लेकर भी नीतीश मौकापरस्त माने गए थे लेकिन उससे ज्यादा तब माने गए जब वो उन्ही मोदी की छतरी के नीचे आए , जिनके साथ कभी भोज तक कैंसिल कर दिया था . हाथ मिलाने से इंकार कर दिया था . बाढ़ राहत का गुजराती चेक तक लौटा दिया था . तो ये साल नीतीश और मोदी के साथ आने के लिए भी जाना जाएगा . इस साथ का असर 2019 में भी पड़ेगा . क्या और कितना , ये तो वक्त बताएगा.
कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की ताजपोशी वो घटना है , जिसके घटित होने का इंतजार कांग्रेसी कई सालों से कर रहे थे . कांग्रेस के बड़े -बड़े नेता कई साल से राहुल की शान में कसीदे पढ़ते हुए उन्हें कमान संभालने लायक बता रहे थे . आखिर वो घड़ी भी आ गई , जब राहुल अपनी माता सोनिया गांधी , पिता राजीव गांधी , दादी इंदिरा गांधी , दादी के पिता जवाहर लाल नेहरु , दादी के पिता के पिता मोती लाल नेहरु की कुर्सी पर विराजमान हो गए . राहुल की ताजपोशी को बीजेपी ने वंशवाद कहा , कांग्रेस ने विरासत कहा . कोई कुछ कहता रहे , होना वही था , जो हुआ . जो कांग्रेस के इतिहास में होता रहा है . ताजपोशी के दो दिन बाद ही राहुल की पार्टी हिमाचल में सत्ता से बेदखल हुई और गुजरात में नए लड़कों , नए समीकरणों के साथ लड़ने के बाद भी सत्ता पा न सके . मंदिर -मंदिर घूमकर , जनेऊधारी हिन्द
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